एसएमएस अस्पताल में मरीजों के साथ हर कदम पर खिलवाड़ की इंतहा है। जिन गरीब, असहाय मरीजों को सीटी स्कैन, एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के लिए निशुल्क काॅन्ट्रास्ट नहीं मिल रहा, उसी काॅन्ट्रास्ट की दवा को बचाकर दूसरे मरीजों के लगा दिया जाता है। अब जबकि हर मरीज से काॅन्ट्रास्ट मंगाया जाता है तो जिस मरीज के बचा हुआ काॅन्ट्रास्ट लगाया जाता है, उसका काॅन्ट्रास्ट वापिस से बाजार में बेच दिया जाता है। यह खुलासा हुआ है भास्कर स्टिंग और उसके बाद ड्रग विभाग की जांच में। ड्रग विभाग की जांच में और भी कई खुलासे हुए हैं।
पिछले कई महीनों से मरीजों के साथ हो रहे खिलवाड़ की हकीकत जानने के लिए भास्कर ने एसएमएस अस्पताल और ट्रोमा सेंटर के बीच बने अंडरपास की दुकानों पर इसकी पड़ताल की। जानकारी सच निकली और निशुल्क दवा योजना में फ्री मिलने वाली दवा को लेकर बाजर में हो रहे खेल को भास्कर इसलिए कर रहा है ताकि निशुल्क दवा में गड़बड़ कर रहे अधिकारियों की आंखें खुलें और काली कमाई को न देखकर गरीबों और मरीजों के हक को देखें।
केस 1: ट्रोमा अंडरपास की दुकान नंबर 17 (हर्षी मेडिकोज)
भास्कर ने एंजियोग्राफी के लिए काॅन्ट्रास्ट मांगा। यहां बैठे व्यक्ति ने गल्ले के पास ही बनी एक रैक में से एक शीशी निकाल कर दे दी। बिल मांगा तो उसने 700 रुपए का बिल दे दिया। भास्कर रिपोर्टर ने जब बिल का और दवा का बैच देखा तो वह अलग था। भास्कर ने जो दवा खरीदी, उसका बैच नंबर 146446220 था, जबकि बिल 076551901 का दिया गया। इस बैच के बारे में जब दुकानदार से बात की तो उसने कहा कि हमने तो यह दवा बेची ही नहीं।
केस 2: अंडरपास की दुकान नंबर 12 (लाइफ मेडिलाइन)
ट्रोमा अंडरपास में ही दुकान नंबर 12 लाइफ मेडिलाइन ने काॅन्ट्रास्ट मांगा। यहां काम करने वाले लड़के ने 500 रुपए में काॅन्ट्रास्ट दे दिया। बिल मांगा तो बोला कि बिल नहीं मिलेगा। जब काॅन्ट्रास्ट काम आ जाए तो आ जाना, बिल दे देंगे। बाद में गए तो लड़के ने बिल तो दिया लेकिन वह भी बैच से अलग था। जब उनसे कहा कि ये बिल नंबर नहीं है तो लड़के ने कहा कि - यह तो हमने दिया ही नहीं। हमारे पास तो दूसरे हैं।
किसी को 500 रुपए तो किसी को 700 रुपए में कैसे?: न केवल भास्कर को 500 और 700 रुपए में काॅन्ट्रास्ट बेचा गया बल्कि बिलों की जांच में सामने आया कि सभी मरीजों को अलग-अलग रेट में यह दिया गया। 600 से 1060 तक में 50 एमएल काॅन्ट्रास्ट बेचा गया। यह ड्रग विभाग के नियमों के खिलाफ है।
भास्कर की सूचना पर ड्रग डिपार्टमेंट का एक्शन
भास्कर ने मामले की सूचना ड्रग विभाग के अधिकारियों को दी। इसके बाद टीम मौके पर पहुंची और करीब नौ घंटे दोनों दुकानों की जांच की। विभाग की टीम ने को ना केवल काॅन्ट्रास्ट के खरीद-बेचान में गड़बड़ी मिली बल्कि अन्य दवाओं में भी ऐसा होना सामने आया। इसके अलावा भी कई गलतियां मिली। मामले की जांच रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को सौंप दी गई है।
सवाल; निशुल्क योजना में काॅन्ट्रास्ट क्यों नहीं आया? जवाब- मिलीभगत है क्या?
निशुल्क दवा योजना में पिछले एक महीने से काॅन्ट्रास्ट नहीं आ रहा। नतीजतन निजी दुकानदारों को यह करने का मौका मिल जाता है। सामने यह भी आया है कि मिलीभगत कर निशुल्क दवा योजना का काॅन्ट्रास्ट रोका जाता है ताकि इन दुकानदारों की कमाई हो सके। जबकि किसी भी दवा के खत्म होने से पहले की जानकारी विभाग के अधिकारियों को होती है। जांच में सामने आया कि परचेज या क्रय बिल नहीं दिया। यानी कि जो बेचा वह बैच नहीं था। सामने आया कि बिना बिल के खरीद और बेचा जाता है। फार्मासिस्ट नहीं था, जिसके बिना ऐसे महत्वपूर्ण दवाइयां खरीद और बेच नहीं सकते। सेल बिल पर साइन नहीं थे।
80 से 90 लाख रुपए डकार गए दुकानदार
एक मरीज से 50 एमएल के दो से तीन शीशी तक काॅन्ट्रास्ट मंगाई जाती है। लेकिन मरीज को 100 में से 70 या उससे कम एमएल काॅन्ट्रास्ट लगाकर बचा लिया जाता है। दूसरे मरीज के साथ भी ऐसे ही किया जाता है। इस तरह कर दो मरीज का काॅन्ट्रास्ट बचा कर तीसरे के लगा दिया जाता है और तीसरे का बाजार में बेच दिया जाता है। एसएमएस में रोजाना कम से कम 450 मरीजों के काॅन्ट्रास्ट लगाया जाता है। यानि कि हर तीन में सेे एक मरीज के बचा हुआ इंजेक्शन लगया जाता है तो रोजाना 150 से अधिक काॅन्ट्रास्ट की शीशी बचा ली जाती हैं। एक 50 एमएल की शीशी 1000 रुपए की बेची जाती है तो 100 एमएल पर 2000 तक बचाए जाते हैं। यानि कि एक दिन में डेढ लाख रुपए और एक महीने में 90 लाख रुपए तक का काॅन्ट्रास्ट बाजार में बेच दिया गया। ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि निशुल्क दवा योजना में दवा नहीं आ रही।